Tuesday, March 02, 2010

अण्डा, डण्डा और हिन्दी का फण्डा

—चौं रे चम्पू! तू भौत हल्ला मचायौ करै, यूनिकोड यूनिकोड। जे यूनिकोड है का बला?
—चचा, इसको बला मत कहना। ये कर रहा है, हमारा, हमारी हिन्दी का और हमारे भविष्य का भला। यूनिकोड भाषाओं के लिए एक महागोद है, जिसमें संसार भर की तमाम महत्वपूर्ण भाषाएं आमोद कर रही हैं।
—तो जे बनायौ कौन्नै? है का चीज़? कम्प्यूटर तौ अंग्रेजी में काम करैं।
—बहुत ग़लत सोचना है आपका। जानकारियों के अभाव में, जैसा आप सोचते हैं, ऐसा बहुत सारे लोग सोचते हैं। दरअसल, कम्प्यूटर कोई एक भाषा नहीं जानता। सिर्फ अंग्रेज़ी जानता हो, ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह तो केवल दो चीज़ें जानता है— एक अण्डा और एक डण्डा।
—अच्छा भैया! अण्डा और डण्डा! अब कछू खोल कै बता मेरे पण्डा।
—चचा! अण्डा माने शून्य, जिसका आविष्कार हमारे देश ने किया है, ऐसा बताया जाता है। डण्डा माने एक की संख्या। कम्प्यूटर केवल इन दो को जानता है। ज़ीरो और एक। इन्हीं के गणित से सारी चीज़ें बन जाती हैं। अण्डे कितने भी हो सकते हैं और डण्डे भी कितने ही हो सकते हैं। आगे-पीछे हो सकते हैं। चार अण्डे आए फिर एक डण्डा आया। दस डण्डे आए फिर एक अण्डा आया। ज़ीरो और वन के कॉम्बिनेशन से बनती हैं सारी चीज़ें। भाषाएं, चित्र, ध्वनियां और चलचित्र, सब कुछ। हर क्षेत्र के सारे काम करते हैं ये अण्डा और डण्डा, यही है कम्प्यूटर का बेसिक फण्डा।
—अच्छा जी! और यूनिकोड?
—यूनिकोड का संबंध भाषाओं से है। दरसल, यूनिकोड कन्सॉर्शियम नाम का एक स्वयंसेवी संगठन है जिसका इरादा फायदा कमाने का नहीं है। लगभग तेईस साल से कम्प्यूटर विशेषज्ञ भाषाओं से जुड़े अनुसंधान कार्य में लगे हुए हैं। यह संगठन चाहता है कि संसार की सभी महत्वपूर्ण भाषाओं के हर वर्ण के लिए अण्डों और डण्डों की संख्या निर्धारित कर दी जाए। यूनिकोड स्टैंडर्ड बना दिया जाए। भाषाओं का मानकीकरण कर दिया जाए। एक निश्चित एनकोडिंग प्रणाली विकसित कर दी जाए।
—सो तो ठीक ऐ, फ़ायदा नायं कमामैं, तौऊ कछू खर्चा तौ आतौ होयगौ। पइसा कहां ते आवै?
—संगठन के सदस्यों से। संसार भर में इसके सदस्य हैं। व्यक्ति भी और संस्थाएं भी। दुनिया की जितनी भी महत्वपूर्ण भाषाएं हैं उनके लिए उन्होंने एनकोडिंग प्रणाली विकसित की। कितने अण्डे और कितने डण्डे, इन्हीं के गणित से चलती है कोडिंग और एनकोडिंग प्रणाली। यह प्रारंभ से निश्चित है कि कितने अण्डे और कितने डण्डे से अंग्रेजी का ‘ए’ बनेगा। क्योंकि अंग्रेजी का कीबोर्ड वही का वही चला आ रहा है, जो पहले टाइपराइटर के साथ बना होगा। लेकिन यूनिकोड स्टैंडर्ड से पहले तक यह निश्चित नहीं था कि कितने अण्डे और कितने डण्डे से हिन्दी का ‘अ’ बनेगा। उससे पहले हमें आधारित रहना पड़ता था अंग्रेजी पर। इसीलिए लोगों को आज भी भ्रम रहता है कि कम्प्यूटर सिर्फ अंग्रेजी जानता है।
—अंग्रेजी पै आधारित कैसै रए?
—हम क्या करते थे कि अंग्रेजी के जो लिपि-चिन्ह थे उनके ऊपर अपनी भाषा के वर्णों को चिपका लिया करते थे। उसी तरह के टाइपराइटर रैमिंग्टन कम्पनी ने बना दिए।
—वाह रे अंग्रेज तेरौ टाइपराइटर! मारौ कहीं पर लगै वहीं।
—हां चचा! टाइपराइटर तो लोहे का था। अंग्रेजी वर्णों की जगह हिन्दी वर्ण ढाल लिए, लेकिन कम्प्यूटर जब कोई वर्ण छापता है तो टाइपराइटर या छापेखाने की तरह ठप्पा या छापा थोड़े ही मारता है, वहां तो सॉफ़्टवेयर काम करते हैं, जो अण्डे और डण्डे से बनते हैं। जिससे चलती है एनकोडिंग प्रणाली। कम्प्यूटर आया तो हमने अंग्रेजी वाली ही अपना ली। जिसे ऐस्की प्रणाली कहते हैं। भारतीय भाषाओं के लिए इसका नाम हमने रख दिया इस्की। यानी अगर हम अंग्रेजी में ‘डी’ टाइप करंगे तो ‘डी’ छपेगा, लेकिन हमने इस्की प्रणाली में कम्प्यूटर को हिन्दी के लिए यह आदेश दिए कि अगर हम ‘डी’ दबाएं तो ‘डी’ मत दिखाना, उसकी जगह ‘क’ दिखाना। ऐसी प्रोग्रामिंग कर दी। आ तो गई हिन्दी पर अंग्रेजी के जरिए आई। ये थी फॉण्ट पर आधारित इस्की प्रणाली।
—वाह रे तेरी इसकी, उसकी, जानै किस-किसकी प्रणाली?
—इसकी, उसकी, जाने किस-किसकी नहीं, चचा! उड़ाओ मत मेरी खिसकी। न इसकी न उसकी। ‘इस्की’ का मतलब है इंडियन स्टैंडर्ड कोड फ़ॉर इंफ़ॉर्मेशन इंटरचेंज। यह विकसित हुआ था ‘एस्की’ से। यानी, अमेरिकन स्टैंडर्ड कोड फ़ॉर इंफ़ॉर्मेशन इंटरचेंज से। यूनिकोड ने इस बंधन से आज़ादी दिला दी।
—जे बात थोरी-थोरी समझ में आई। आगे की बात रुक्कै करियो। चाय पीबैगौ?

4 comments:

निर्मला कपिला said...

वाह वाह आपने अपने अलग स्टाईल मे हमे उनीकोड का अर्थ समझा दिया। मगर हमारे लिये तो ये लम्प्यूटर बाबा अभी भी काला अक्षर भैंस बराबर है
बस ब्लागिन्ग के लिये जो चाहिये होता है उतना ही पता है। तो आज उनीकोड का अर्थ और कम्प्यूटर प्रणाली का भी पता चल गया। तो आज का सबक *क* याद कर लिया है। धन्यवाद आगे से भी *खः का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद

शरद कोकास said...

ऊनीकोड तो बढिया है हम भी लिखते है।

डॉ महेश सिन्हा said...

बढ़िया

अमित माथुर said...

गुरुदेव को प्रणाम, सचमुच यूनीकोड की ज़बानी हमें अपनी बात कहने में आजादी मिली है मगर अभी और भी बहुत विकास होना है. उम्मीद है ये दुनिया अभी और सिकुड़ेगी. अब बताइये गर्मी हमारी नजदीकियों और रिश्तो में बढ़ रही है तो खतरा 'ग्लोबल वार्मिंग' का पैदा होने लगा है. चलिए फिर मिलेंगे. वैसे आपकी लेखनी में व्यंग और उल्लास के रंगों के साथ विज्ञान का समावेश देखना सुखद है.