बच्चे ने रट लगा दी,
बार-बार कहे-
दादी!
तोते की तरह
टें बोलकर दिखाओ!
दादी भी अड़ गई-
क्यों बोलूं पहले ये बताओ?
आख़िरकार बच्चे ने राज़ खोला
बड़ी ही मासूमियत से बोला-
कल रात जब
मैं झूटमूट को सो रहा था,
तब पापा ने
मम्मी से कहा था
कि अम्मा जब
टें बोलेगी तो
ख़ूब सारे रुपए मिलेंगे,
फिर हम
ये घर बेच के
नया घर लेंगे।
दादी ने किसी तरह
रोक लिया रोना,
बच्चा ज़िद कर रहा था-
अब तो टें बोल दो ना!
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10 comments:
जीवन का यही सच है, बच्चे एकदम निर्मल और युवा एकदम मैले। अच्छा व्यंग्य।
बढ़िया सटायर है अशोक जी ।
हा हा हा ! दादी टें बोलने से कब तक बचेगी।
बढ़िया व्यंग।
ha ha ha
ten bol do na
ये व्यंग्य है या यथार्थ?
जो भी हो सत्य है.
बड़ा सटीक व्यंग्य है
ashok ji namaskar, mujhe aapko blog per khoj kar atyant prasannta ho rahi hai. mai aapka bahut bada prsansak hoon. asha hai ki aap apne charno tale mujhe kuch sikhne ka mauka denge. kripya kar mujhe apna sisya bana lijiye.
aapka soumendra priyadarshi
आखिर आपका ब्लॉग ढूढ़ ही लिया |वाकई बच्चे निर्मल मन के ही होते है|अजीब विडम्बना है कि बच्चों को जिन माता-पिता के आदेश पालन की सलाह दी जाती है,उनका स्वयं का सोच कितना दूषित होता है|
वाह साहब वाह
आपकी हर कविता आपका मुरीद बना देती है
Really This is a TAMACHA on the young generation...........
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