Tuesday, March 09, 2010

टें बोल दो ना!

बच्चे ने रट लगा दी,
बार-बार कहे-
दादी!
तोते की तरह
टें बोलकर दिखाओ!

दादी भी अड़ गई-
क्यों बोलूं पहले ये बताओ?

आख़िरकार बच्चे ने राज़ खोला
बड़ी ही मासूमियत से बोला-
कल रात जब
मैं झूटमूट को सो रहा था,
तब पापा ने
मम्मी से कहा था
कि अम्मा जब
टें बोलेगी तो
ख़ूब सारे रुपए मिलेंगे,
फिर हम
ये घर बेच के
नया घर लेंगे।
दादी ने किसी तरह
रोक लिया रोना,
बच्चा ज़िद कर रहा था-
अब तो टें बोल दो ना!

10 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

जीवन का यही सच है, बच्‍चे एकदम निर्मल और युवा एकदम मैले। अच्‍छा व्‍यंग्‍य।

शरद कोकास said...

बढ़िया सटायर है अशोक जी ।

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! दादी टें बोलने से कब तक बचेगी।

बढ़िया व्यंग।

Tej said...

ha ha ha
ten bol do na

Rahul Priyadarshi 'MISHRA' said...

ये व्यंग्य है या यथार्थ?
जो भी हो सत्य है.

अनिल कान्त said...

बड़ा सटीक व्यंग्य है

soumendra priyadarshi said...

ashok ji namaskar, mujhe aapko blog per khoj kar atyant prasannta ho rahi hai. mai aapka bahut bada prsansak hoon. asha hai ki aap apne charno tale mujhe kuch sikhne ka mauka denge. kripya kar mujhe apna sisya bana lijiye.
aapka soumendra priyadarshi

beena said...

आखिर आपका ब्लॉग ढूढ़ ही लिया |वाकई बच्चे निर्मल मन के ही होते है|अजीब विडम्बना है कि बच्चों को जिन माता-पिता के आदेश पालन की सलाह दी जाती है,उनका स्वयं का सोच कितना दूषित होता है|

Yugal said...

वाह साहब वाह
आपकी हर कविता आपका मुरीद बना देती है

Mickey said...

Really This is a TAMACHA on the young generation...........