—चौं रे चम्पू, सानिया-सुऐब कौ ब्याह ठीक भयौ का? तू का मानै?
—चचा, विवाह तो हर प्रकार से विचार करने के बाद ही किया जाता है। सानिया ने सोचा है कि ठीक है, तो बिल्कुल ठीक है। उसने किसी अन्य जीवधारी से तो विवाह नहीं किया! समलिंगी से तो नहीं किया! प्रकृति के नियमों का पालन किया। एक पुरुष से प्रेम किया। मुश्किल में उसका साथ दिया। इसमें क्या बुराई है?
—एक पाकिस्तानी ते कियौ, जे गल्त बात नायं का?
—ग़लत क्यों है? कोई नई बात है क्या? विभाजन के बाद से दो देशों के युवाओं में विवाह होते आ रहे हैं। परस्पर ख़ून के प्यासे कबीलों के युवाओं ने युद्ध भी कराए हैं और मैत्रियां भी। कहानियों में अमर हो गए ऐसे प्रेमी। इन प्रेमियों ने भविष्य के नज़रिए बदल दिए। चचा, ये बताइए कि अगर नई पीढ़ी नहीं बदलेगी तो कौन बदलेगा इस दुनिया को?
—सानिया कौ एक खेल-प्रेमी समाज ऊ तौ हतै अपने देस कौ? सो बिचार नायं कियौ?
—क्या बात करते हैं चचा! मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। आप तो जानते हैं कि धरती सूरज से छिटक कर एक आग के गोले के रूप में अरबों खरबों वर्ष तक अपने ठण्डे होने की प्रतीक्षा करती रही होगी तब कहीं उसमें जलचर, नभचर, थलचर पैदा हुए होंगे। उस धरती में देश नहीं थे, सीमा रेखाएं नहीं थीं। आदि मानव ने आज का मानव बनने में हजारों-लाखों वर्ष लगाए हैं, उसी ने सीमा रेखाएं खींची हैं, उसी ने देश बनाए हैं। हमारा देश तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत को मानने वाला रहा है। पूरी वसुधा एक कुटुम्ब है। तो फिर क्या हिन्दुस्तानी और क्या पाकिस्तानी?
—बहुत ऊंची मत छोड़ रे, जमीन की हकीकत बता।
—चचा! ज़मीन पहले आई या वो हकीकत पहले आई, जिसका आप ज़िक्र कर रहे हैं? ज़मीन अपने आप में एक हकीकत है। विवाहों के इतिहास पलट कर देखिए। मोहनमाला नाम की किताब के पेज एक सौ छ: पर महात्मा गांधी ने लिखा है— ’विवाह जिस आदर्श तक पहुंचाने का लक्ष्य सामने रखता है, वह है शरीरों के द्वारा आत्मा की संयोग-साधना। विवाह जिस मानव-प्रेम को मूर्त रूप प्रदान करता है, उसे दिव्य-प्रेम अथवा विश्व-प्रेम की दिशा में आगे बढ़ने की सीढ़ी बनाया जाना चाहिए।’ सानिया-शोएब विवाह से युद्धोन्मादियों को सबक लेना चाहिए।
—तू अपने देस के लोगन कूं जानैं नायं का? जब सानिया खेलेगी तौ भारत में तारी बजिंगी का, बता?
—अगर नहीं बजती हैं तो हमें अपने आपको समझाना होगा कि वह हमारे देश की बालिका है, कॉमनवेल्थ गेम्स में हमें उसका मनोबल बढ़ाना है। अगर हमने उसका मनोबल न बढ़ाया तो अच्छा खेल नहीं दिखा पाएगी। उसने स्वयं कहा है कि मैं पाक की बहू नहीं, शोएब की पत्नी हूं। मैंने किसी पाकिस्तानी से नहीं, एक इंसान से शादी की है। दो लोग दो देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए भी पति-पत्नी बने रह सकते हैं। यह भविष्य की संस्कृति का संकेत है। हर चीज में बुराई देखना अच्छी बात नहीं होती है चचा। और वे घर भी बसाना चाहते हैं ऐसी जगह जो न भारत है, न पाकिस्तान। मेरी कामना तो ये है कि पूरी धरती पर जो भी अपने कौशल को जिस तरह से दिखाना चाहता है, उसको मौका मिले। अब यह तो प्यार की, आत्मीयता की और एकमेक हो जाने की भावना पर निर्भर करता है कि शोएब भी सानिया को उतना ही स्पेस देता है कि नहीं। मैं तो समझता हूं, जब भारत की ओर से खेलते समय कॉमनवेल्थ गेम्स में सानिया लगातार जीतेगी तो शोएब भारत के लिए तालियां बजाएगा और शोएब ने अगर हमारी सानिया के लिए तालियां बजाईं तो हम उसे सिर आंखों पर रखेंगे और कामना करेंगे कि आजादी से पहले जो प्यार, सद्भाव हम सबमें था, वह वापस आ जाए। किसी कठमुल्ले या कठपंडित के फतबों से ऊपर उठकर ये युगल अपना रुतबा दिखाए और पूरी दुनिया को बताए कि प्रेम एक बड़ी ताकत है जो राजनीति को नीति में बदल सकती है और युद्ध को शांति में।
—ऐसे ख्वाब मत देखै, जो पूरे नायं है सकैं।
—चचा तुम मेरे गुब्बारे में पिन मारते रहते हो, मैं अच्छी-अच्छी सोच की हवा भर के फुलाता हूं, तुम फिस्स कर देते हो।
—अरे तेरे सोचिबै ते का ऐ? फिस्स करिबे वारे ठस्स लोगन की कमी ऐ का हिन्दुस्तान में!
Friday, April 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
चक्रधर जी आप साठ को क्रास
करने वाले हैं कलमें भी सफ़ेद होने
लगी होंगी आप कहाँ छोरा छोरी
के चक्कर में पङे है अब आगे का
रास्ता सुधार लें बहुत मौज मस्ती
हो गयी आपने शायद कबीर की
अनुराग सागर नहीं पङी जो आदमी
को हमेशा के लिये हिला देती है
कबिरा वो धन संचिये जो आगे कू होय
ये धन कौन सा है और कैसे मिलता है
ये आप मुझे बता दें तो मैं मान लूँगा
कि आप ने जिन्दगी को ठीक समझ लिया
नहीं आता तो मुझसे पूछ लेना..मुझे आपका
पक्का पता है कि आपको नहीं पता..यदि ऐसा
होता तो आपका लेखन ही अलग होता..मैं
जिन्दगी में दो आदमियों को विशेष अभागा
समझता हूँ एक खुशवन्त सिंह दूसरे सुधीर
कक्कङ
गुरु जी आपका लेख अच्छा लगा...
सानिया के लिए कुछ समय पहले दो लाइने लिखीं थीं...
सानिया व शोएब में, होने चला निकाह
सुमित दुखी हो कर रहे, मिर्ज़ा को गुड-बाय॥
वर्तमान में सानिया व शोएब के लिए उपयुक्त लाइने कुछ यूं है...
राम मिलाये जोड़ी
एक अंधा, एक कोड़ी
" बढ़िया जनाब......"
Uttam drishtikon .. Umda lekh
waqt hi batayega.. hum kya batayen ji
श्रधेय प्रणाम
बहुत शुक्रिया इस खूबसूरत पैगाम के लिए जिसका उन्वान ही मोहब्बत है .........
राजीव कुलश्रेष्ट जी आदाब
गुस्ताखी मुआफ पर
ज़रा एक बार फिर इस लेख पर नज़र दलियेअ इसमें एक खूबसूरत लाइन है , मैं याद दिला देता हूँ
हर चीज में बुराई देखना अच्छी बात नहीं होती है चचा
और आप ka इतना बड़ा कमेन्ट यही दिखला रहा है की आपने सिर्फ negative mind set लेकर comment दिया .....
अगर दोनों ने शादी कर ही ली तो किसके किसके घर की छत टपकने लगी और आप इल्म को सामने लेकर आ गये
और हाँ वो धन मोहब्बत ही है जो हमेशा आपके साथ रहेगी हो सकता है इसके पर्याय कबीर ने कुछ और दिए हों और गर इसके अतिरिक्त कुछ है तो वो गलत है .....
ये शीशा-ऐ - करागरी है जनाब
एक मुझे शेर याद आ गया मेरा कि
महब्बत कि कैसी अजब दास्ताँ है
हवा भी न माने , दिया भी न माने
अब तो आप मन लीजिए .....मुआफ कीजिएगा कुछ गुस्ताखी हुई हो तो
मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपरा, आसन मारि मंदिर मा बइठे, ब्रम्ह छांड़ि पूजन लगे पथरा। कनवा फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होई गइले बकरा। जंगल जाए जोगी धूनी रमौले, काम जराए जोगी होइ गइले हिजरा। कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, जम दरवजवा बांधल जइबे पकरा।
Post a Comment