Wednesday, September 29, 2010

साधना की अवधि पूरी हो गई

—चौं रे चम्पू! भौत याद आय रई ऐ नंदन जी की, उनकी सबते अच्छी पंक्ती कौन सी लगैं तोय?
—वे अक्सर सुनाया करते थे— ‘अजब सी छटपटाहट, घुटन, कसकन, है असह पीड़ा, समझ लो साधना की अवधि पूरी है। अरे, घबरा न मन!चुपचाप सहता जा, सृजन में दर्द का होना ज़रूरी है।’
—जे बात उन्नैं सिरजन के बारे में कही कै अपने बारे में?
—चचा! उन्होंने अपनी ज़िंदगी और अपने सृजन में कोई अंतर नहीं किया। लोग कुछ भी कहें, कुछ भी मानें, उन्होंने अपनी साधना को अवधि देने में कोई कमी नहीं की। जिस दिन वे गए उस दिन उन्हें दिनेश मिश्र जी की गोष्ठी में आईआईसी आना था, उससे एक दिन पहले रूसी सांस्कृतिक केंद्र के एक कार्यक्रम में जाना था। बारह अक्टूबर के लिए हिंदी अकादमी को हां भरी थी। साधना की अवधि जल्दी पूरी हो गई। अभी दो साल पहले जब उनका पिचहत्तरवां जन्म-दिन मनाया गया तो कई लोगों का मानना था कि उन्हें पिचहत्तर का होने का कोई अधिकार नहीं है। लगते ही नहीं थे साठ से ज़्यादा। काम इतना करते थे जैसे तीस-चालीस के हों। पिछले दो साल में ही अस्सी के से लगने लगे।
—बो अपनी तकलीफन पै ध्यान नायं देते लल्ला!
--ठीक कह रहे हो चचा! डायलिसिस की मशीन से सीधे उठकर कार्यक्रमों में पहुंचने का सिलसिला वर्षों से चल रहा था। न अपनी तकलीफ़ों का गायन करते थे न कभी मदद के लिए गुहार लगाते थे, ज़माने के दर्दों को गीतों और कविताओं में ढाल कर ज़रूर गाते थे। सही बात के लिए अपने आत्मीयों की मदद के लिए सही समय पर हाज़िर। वे कहते थे कि कविता लिखना मेरा जीवंत और मानवीय बने रहने की प्रक्रिया का ही एक अंग रहा है। आदमी बने रहना मेरे लिए कवि होने से बड़ी चीज़ है। बिरले इंसान होते हैं ऐसे। डॉ. कन्हैया लाल नंदन जैसे।
—आड़े बखत पै तेरौ साथ निभायौ उन्नै, मोय याद ऐ।
—समझिए, साढ़े तीन दशक से उनका सान्निध्य सुख मिला और इस अंतराल में मैंने उन्हें एक बहुमुखी प्रतिभा का धनी और उदारमना व्यक्ति पाया। वे वाचिक परंपरा से जुड़े होने के बावजूद साहित्यिक हल्कों में भी स्वीकार किए जाते थे। सबसे बड़ा काम उन्होंने जनमानस के एक सांस्कृतिक शिक्षक के रूप में किया। उन्होंने अच्छी कविता सुनने का सलीक़ा पैदा किया। वे एक सांस्कृतिक, सामाजिक और सौन्दर्यशास्त्रीय मनोवैज्ञानिक थे। बच्चों की पत्रिका पराग से लेकर बुद्धिजीवियों की पत्रिका दिनमान के संपादन के अलावा उन्होंने संचार, संवाद और संप्रेषण की दुनिया में क्या-क्या किया सब जानते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उनका मित्र-परिकर बहुत बड़ा था। अहंकार से शून्य थे चूंकि जनता से सीधे जुड़े हुए थे। अहंकार तब आता है जब आप अपने कोटर में बन्द होकर अपने आपको बहुत बड़ा साहित्यकार मानने लगते हैं। मैं जानता हूं कि लोकमन का, सांस्कृतिक उत्थान की चाहत के साथ, रंजन करना एक चुनौती की तरह होता है। इस दुरूह कार्य को वे बड़े संयम और गंभीरता से करते थे। संप्रेषण को मानते थे प्रमुख, लेकिन कठिन बिम्बों को भी बोधगम्य बनाने का कार्य उन्होंने मंच पर किया। मंच की कविता प्रायः सपाट सी हो जाया करती है, लेकिन उन्होंने सपाट पाट पर भी अपना घाट अलग बनाया और ठाठ से पूरा जीवन जिया। पूरे समय तक मंच पर रहते थे, ऐसा नहीं कि अपनी कविता सुनाई और चल दिए। वे सबको बहुत ध्यान से सुनते थे और सबसे बात करते थे। नए कवियों को न केवल प्रोत्साहित करते थे, बल्कि नया सीखने को भी सदैव तैयार रहते थे।
—नयौ सीखिबे कू कैसै तैयार रहते?
—कम्प्यूटर की ही लो चचा! उन्होंने बच्चों से सीखा। ‘जयजयवंती’ से उन्हें जो लैपटॉप मिला, यात्राओं में अपने साथ रखते थे। भारत में ऐसे बहुत कम हिंदी साहित्यकार होंगे जो पिचहत्तर पार करने के बाद कम्प्यूटर में दक्षता के लिए प्रयत्नशील रहे हों। मेरी उनसे कम्प्यूटर आधारित चर्चाएं खूब होती थीं। मुझसे बहुत स्नेह मानते थे। ठहाकों के, उल्लास-उमंग और विषाद के बहुत अंतरंग क्षण मैंने उनके साथ बिताए हैं। चचा। वे जो करते थे, पूरे मन से करते थे। उनका जाना मेरे लिए तो व्यक्तिगत रूप से बहुत ही बड़ा नुकसान है।
—तेरौ क, पूरी बगीची कौ ई नुकसान ऐ रे!

12 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें ॥

डॉ टी एस दराल said...

नंदन जी को विनम्र श्रधांजलि ।
आपने इस महान कवि और पत्रकार के प्रति सार्थक उदगार प्रकट किये हैं ।

Majaal said...

अभी उनका विडियो देख रहा था youtube में, कुछ ऐसा कहा था :
अपनी दास्ताँ फिर कभी सुना लेना नदी,
अभी प्यासा हूँ , पहले पानी पिला दो .. !

RIP

Parul kanani said...

mera bhi shat shat naman!

hemant said...

nandan ji ko meri aur mere parivar ki taraf se shradhanjali

Asha Lata Saxena said...

नंदन जी को श्रद्धांजली |आपने बहुत सार्थक पोस्ट लिखी है |

Khare A said...

aisi mahan Atma ko shat shat naman,
bhgawan unki aatma ko shanti pradaan kare.

girish pankaj said...

ईश्वर नंदन जी की आत्मा को शांति प्रदान करें....

शिवम् मिश्रा said...

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें ॥

बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

रचना दीक्षित said...

सार्थक पोस्ट नंदन जी को विनम्र श्रधांजलि

महेन्‍द्र वर्मा said...

नंदन जी के संपादकत्व में प्रकाशित होने वाली पत्रिका दिनमान और पराग का मैं नियमित पाठक रहा...इस लेख के माध्यम से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने का अवसर आपने उपलब्ध कराया, धन्यवाद...उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

Asha Joglekar said...

नंदन जी को श्रध्दांजली ।