इस चक्रधर के मस्तिष्क के ब्रह्म-लोक में एक हैं बौड़म जी। माफ करिए, बौड़म जी भी एक नहीं हैं, अनेक रूप हैं उनके। सब मिलकर चकल्लस करते हैं। कभी जीवन-जगत की समीक्षाई हो जाती है तो कभी कविताई हो जाती है। जीवंत चकल्लस, घर के बेलन से लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन तक, किसी के जीवन-मरण से लेकर उसके संस्मरण तक, कुछ न कुछ मिलेगा। कभी-कभी कुछ विदुषी नारियां अनाड़ी चक्रधर से सवाल करती हैं, उनके जवाब भी इस चकल्लस में मिल सकते हैं। यह चकल्लस आपको रस देगी, चाहें तो आप भी इसमें कूद पड़िए। लवस्कार!
11 comments:
हा हा, बिल्कुल सही कहा आपने!! ये किसी के बस का नहीं.
सही कह रहे हैं आप :)
फिर भी लोग ठूस ठूस कर पहन ही लेते हैं
फिर चाल ही टेढी क्यों न हो जाये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
फिर भी लोग पहनने से बाज़ नही आते हैं,
कभी ऐडी दबाते हैं तो कभी उंगली फ़साते हैं
और फ़िर कहते है!!! यार काट रहा है ।
बडका भाई हमारे छत्तीसगढ में एक कहावत है मुड बडे सरदार के गोड बडे गंवार के ईसीलिये साते नंबर के जुता पहिनाये रहे हो
जो दिखा रहे है सेम्पल
सात नम्बर के पैर में
हजार नम्बर की चम्पल!!
कैसे पहने कोई? :)
चक्रधर जी आपके संग मंच पर कभी काव्यपाठ का सुयोग चाहता हूँ।
कवि कुलवंत सिंह
http://kavikulwant.blogpost.com
नेता यही जुगत तो अपनाते हैं
जो दस नम्बरी होते हुये भी
देश के कर्णधार बनाये जाते हैं
वाह बहुत खूब अशोक जी आपका अंदाजे बयां ही है कुछ और
बड़ी टेढ़ी खीर है यह आपकी मंसा भी उधृत हो रही है कैसे अन्यों के वस्त्रों को डाल मात्र लेने से क्या होता है…!!!
वाह वाह
कम शब्दाें में इतनी बडी बात़़़़ ़़़़ ़ बहुत खूब
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