नन्ही सचाई
एक डॉक्टर मित्र हमारे
स्वर्ग सिधारे।
असमय मर गए,
सांत्वना देने
हम उनके घर गए।
उनकी नन्ही-सी बिटिया
भोली-नादान थी,
जीवन-मृत्यु से
अनजान थी।
हमेशा की तरह
द्वार पर आई,
देखकर मुस्कुराई।
उसकी नन्ही सचाई
दिल को लगी बेधने,
बोली-
अंकल!
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।
28 comments:
Ek bahut hi jaane-pahchaane vaakya se itni sunder Rachana.....
Adbhut
जी यही है नन्ही सच्चाई, भावपूर्ण कविता
नन्ही सच्चाई... मासूम सच्चाई... एक मात्र सच्ची सच्चाई
hameshaa ka tarah lajawaab rachna
सीधे दिल पर असर कर गई यह नन्ही सचाई.
aap ki kavitayon per comment nahin likh saktee per chahtee hoon aap meri kavitoyon per kabhie kuch likhae
thanks
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/
मासूम की वाणी-दिल को छू गई.
छू लेने वाली कविता…।
मानवतावाद के विखरे हुए उद्देश्य को अच्छी तरह प्रकट किया है।
नही मालूम था कि बौड़म जी ऐसी दिल को छू लेने वाली कविताएं भी लिखते हैं!
बच्चे का मृत्यु के कारणों से साक्षात्कार बच्चे की ही भाषा में मार्मिक बन पडी है कविता
मार्मिक कविता
अशोक जी , इस बार दिल को छू लिया आपने। इस बार कोई चकल्लस नहीं हुई।
बोली-
अंकल!
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।
इस पंक्ति के बाद कविता आसमा छू लेती है और हृदय के भीतर बहुत गहरे महसूस होती है। बहुत ही सुन्दर रचना पढवाने का आभार।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बच्चे निश्छल होते हॆ-उनकी निश्छलता को भावपूर्ण अभिव्यक्ती देती सुंदर रचना.कई सालों के बाद आपकी नयी कविता पढने को मिली हॆ.
चक्रधरजी आपको ब्लोग्साईट पर देख कर एक सुखद अनुभव हुआ। अक्सर यहां अनछपे कवि ही दिखते हैं। एक जाना पहचाना हस्ताक्षर को यहां देख कर बहुत खुशी हुई।
अनुभव हुआ। अक्सर यहां अनछपे कवि ही दिखते हैं। एक जाना पहचाना हस्ताक्षर को यहां देख कर बहुत खुशी हुई।
हमारी आँख के आँसू भी कर लीजै स्वीकार...काश हम सब ऐसे ही बच्चे हो जाएं...कुछ पल मनुष्य बन जाएँ.
Baat wahi hai shabd wahi hain...aapki kalam se utre to jaan bhar gai....
गहरी वेदना, दिल तक समाई है,
शब्दों का श्रंग ले गहरी गहराई है
हमारी समझ में बस एक बात आई है,
"नन्ही सच्चाई ", नन्ही नहीं...
वरन एक बहुत बडी सच्चाई है,
अच्छी हेगी अशोक जी ये कविता
http://subeerin.blogspot.com
अच्छी हेगी अशोक जी आपकी ये कविता भोत भोत अच्छी हेगी
पंकज सुबीर सीहोर
Jeevan kee sachchai hai ye.kitnee asani se parichay karaa diya apne.Nanhi jubaan ne jis tarah kaha .shabd gahrai tak choo gaye.bahoot achchi rachnaa hai.
चक्रधर जी
खूब अछूती रचना के अविध्कार के लिये बधाई
असुवन के श्रधाँजली उनके नाम
जो मरकर भी नहीं मरे
बस! जिंदा दिलों की वो
धड़कन बन कर धड़कते रहे.
देवी नागरानी
नमस्कार अशोक जी, टी.वी पर तो आप का कार्यक्र्म देखते ही हैं. सौभाग्य कि यहाँ पढ़ने को भी मिल रहा है...
नन्ही सच्चाई सच मे मर्म को गहरे तक बेध गई है.
बोली-
अंकल!
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।
mere me itna sahas nahin hai ki aapki kisi rachna per koi bhi abhivaykti vyakt karun.....bas dil ko chho gai ye lines.........aisa sirf chakrdhar saab hi likh sakte hain............shat shat naman aapko.....
compossed very heart toucing poetry
chakradharji, aapki kavitao ke jaadu se to main kabse prabhavit hoon, abhi aapka mere college bhi aana hua parantu main aapse milne ka saubhagya prapt nahi kar saka....
aur aapki rachnao ki taarif karna to suraj ko deepak dikhane ke tulya hai...
Very nice and touching!
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