Wednesday, April 20, 2011

आंतरिक ऊष्मा की किरणें

—चौं रे चम्पू! तेरे कित्ते दोस्त और कित्ते दुस्मन ऐं रे?
—चचा, दोस्ती और दुश्मनी के बारे में मेरे पिताजी एक बात कहा करते थे।
—बता! बो तौ हमेसा अच्छी बात कहौ करते।
—उनकी कथनी में दो लोगों का सम्वाद कुछ इस तरह था कि मैं अपने दुश्मन से प्यार करता हूं। कौन है तुम्हारा दुश्मन? वही जो मेरा दोस्त है। कौन दोस्त? ये पूछकर क्या करोगे मेरे दोस्त? चचा, दोस्ती एक ऐसी चीज़ है, जिसमें एक दीवानी दुश्मनी की दखलंदाज़ी लगभग बनी रहती है। प्यारा दोस्त, प्यारा दुश्मन होता है। छोटी-मोटी चीजें आती रहती हैं, जो दुश्मनी जैसा आभास दिलाती हैं। वे आती हैं एकाधिकार की प्रवृत्ति के कारण, ईर्ष्याओं के कारण या मनोनुकूल कार्यों के समायोजन के अभाव के कारण, लेकिन एक बार यदि दोस्ती की बुनियाद पड़ जाती है तो पड़ ही जाती है। भवन की मंज़िलें गिरती उठती रह सकती हैं। बीज पड़ चुका है तो कभी भी उसका किल्ला फूट सकता है। चार दिन पहले देहरादून से कवि सुरेन्द्र शर्मा के साथ रेल से दिल्ली वापस आया, सुबह पांच बजे। ड्राइवर छुट्टी पर, रविवार का दिन। अब कहां टैक्सी-स्कूटर ढूढूं। सुरेन्द्र जी बोले— ‘चल मैं छोड़ देता हूं बाहर तक।’ मैंने कहा कि यहीं से ले लेता हूं। फिर बड़े प्यार से उन्होंने कहा— ‘चल चाय पी के निकल जाना घर से।’ चाय के प्यारे प्रस्ताव से पुरानी दोस्ती की किरणें फूटती सी दिखाई दीं। वैसे मैं आमतौर से घर ही लौटना पसंद करता हूं। कहीं किसी को छोड़ते हुए भी जाना हो तो उसके यहां भी चाय के लिए नहीं ठहरता। उनके प्रस्ताव में नर्म गर्मी थी। दोस्ती के लिए ज़रूरी होती है ऊष्मा। वो भी अन्दर की। बाहर के दिखावे की नहीं। दोस्ती में कोई बाध्यता नहीं होती। आंतरिक ऊष्मा ही परस्पर आकृष्ट करती है। पहुंच गए जी उनके घर। उन्हें भी नागपुर के लिए तत्काल ही निकलना था। मैं चाय पीते-पीते सोचने लगा कि घर लौटने के रास्ते में एक शौक पूरा किया जा सकता है।
—कौन सौ सौक रे?
—अरे, फोटोग्राफी का चचा। लंदन से एक डी-नाइंटी निकॉन कैमरा लेकर आया था। मेरे पुराने शौक के पास नया उपकरण था। अचानक मन में आया और सुरेन्द्र जी को भी बताया कि मैं पुरानी दिल्ली की उन तंग गलियों में जाना चाहता हूं जहां तीस-बत्तीस साल पहले अपने यार सलीम के साथ घूमे थे और कविता लिखी थी ‘बूढ़े बच्चे’, लेकिन ढीलाढाला कुर्ता पहन कर क्या चुस्त फोटोग्राफी करेंगे, चलो विचार त्यागते हैं। किसी दिन शर्ट-जींस में आएंगे। मैंने देखा कि दोस्ती की ऊष्मा और बढ़ गई, उन्होंने अलमारी खोल दी, ‘जो अच्छी लगे पहन ले।’ अरे, चचा बता नहीं कता दोस्ती जब अन्दर से फव्वारे की तरह फूटती है तो इसकी हवादार फुहारों में भीगना बड़ा अच्छा लगता है। मैंने एक टी-शर्ट पर हाथ रखा। झट से उन्होंने उतार कर दे दी। कुर्ता अटैची में, टी समाप्त, टी-शर्ट शरीर पर, कैमरा कंधासीन। पहुंच गए तुर्कमान गेट। फोन घुमाया यार सलीम को और यार सलीम की आवाज़ से भी आंतरिक ऊष्मा की किरणें निकलीं।



अब उनकी उम्र सत्तर पार हो गई है। घुटने दर्द करते हैं। आमतौर से टहलने भी नहीं निकलते, लेकिन दोस्ती की ऊष्मा ने ऐसा ज़ोर मारा चचा कि तीन घंटे तक मेरे साथ घूमते रहे। घुटने का दर्द पता नहीं कहां ग़ायब हो गया। दोस्ती एक ऐसी चीज़ है चचा जो घुटन को दूर कर देती है और अगर उसमें घुटन बढ़ जाए तो घुटने क्या सब कुछ ख़राब कर देती है। आदमी घुटने टेक देता है। दोस्ती निस्वार्थ हो और वक़्त पर काम आने का माद्दा रखती हो तो कोई अर्थ रखती है। पन्द्रह साल से सलीम अपने घर बुला रहा है। मैं जा नहीं पाया और जब मिले तो इतना आनन्द आया चचा कि मैं बता नहीं सकता। पेश हैं तीन दोहे, दोस्त, प्रियंकर बंधुसम, साथी, मन का मीत। हितू, हितैषी, शुभैषी, हमजोली, मनजीत! संगी, संगतिया, सखा, सहचर, सखी, अज़ीज़। जिगरी, याड़ी, यार, या यारा मादक चीज़। हितकामी स्नेही कहो, मितवा या कि हबीब, मित्र भले मिल ना सके, दिल के रहे क़रीब।
—फोटू ऐंचे?
—फेसबुक पर अपने हज़ारों ‘दोस्तों’ के लिए चढ़ा भी दिए।

11 comments:

Khare A said...

wah Guru shreshtha, kya charcha ki hai apane, bakai dosti se anmol koi cheez nhi ho sakti kabhi bhi!.

bahut bahut achha laga ye sab jaankar!

डॉ टी एस दराल said...

पुराने दोस्त मिल जाएँ तो जिंदगी रिवर्स गियर में चलने लगती है । बड़ा आनंद आता है ।
बढ़िया संस्मरण ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कितने आदमी?
तीन!
कौन?
दोस्त, दुश्मन और मैं :)

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

दोस्ती.....हम्म...सही व्याख्या है.....
और शब्दों के खेल में आप तो पारंगत हैं ही......
प्रणाम.

Ashish (Ashu) said...

"दोस्ती एक ऐसी चीज़ है चचा जो घुटन को दूर कर देती है और अगर उसमें घुटन बढ़ जाए तो घुटने क्या सब कुछ ख़राब कर देती है।"
सही कहा आपने...

Unknown said...

ahasaan mere dil pe tumhara hai dosto, ye dil tumhare pyar ka maara hai dosto. aapne is geet ki yaad dila de ashok jee . dushyant rishi

विशाल चर्चित (Vishal Charchit) said...

क्या जोड़ी है चचा भतीजे की! बात लिखने का अंदाज़ भी ऐसा है कि जैसे हम लाइव सुन रहे हों. आप चचा भतीजा दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं. कुछ और मुद्दों पर भी चकल्लस कीजिये. हमें प्रतीक्षा है.

Unknown said...

Ashok chakradhar G

Sir, my son has been selected in inter-state compitition where he wanted to perform apki kavita
"ichha-shakti"

wo bhi apke wali hi bemisaal adda se , ussi dil ko chu jane wale andaaz mein, ussi haaw -bhaaw ke saath, ussi josh mein

so plz aap mujhe uska live demo mail kr sakte hai....aisapra@gmail.com..... plz
i'll b very greatful SIR...
Rgds

Unknown said...

Sir kamaal likha hai aapne
Maine b ek ubharya kavi hun
Please check my kavi blog
http://amitkavyalya.blogspot.in/?m=1

Unknown said...

Sir kamaal likha hai aapne
Maine b ek ubharya kavi hun
Please check my kavi blog
http://amitkavyalya.blogspot.in/?m=1

Zee Talwara said...

दोस्ती एक ऐसी चीज़ है चचा जो घुटन को दूर कर देती है और अगर उसमें घुटन बढ़ जाए तो घुटने क्या सब कुछ ख़राब कर देती है। आदमी घुटने टेक देता है। दोस्ती निस्वार्थ हो और वक़्त पर काम आने का माद्दा रखती हो तो कोई अर्थ रखती है हिंदी फनी जोक्स पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।