Tuesday, April 05, 2011

नागार्जुन पर संगोष्ठी के बाद

(हमारे कुछ तथाकथित महानों का वाग्विलास)

नागार्जुन पर

सफल संगोष्ठी के बाद

मैखाना हुआ आबाद।

पहले पैग के बाद

ग़रीबी का गौरवीकरण हुआ।

दूसरे के बाद क़रीबी का

कौरवीकरण हुआ।

पहले पैग ने पहले को

ऐश में ला दिया,

लेकिन तीसरे पैग ने

तीसरे को तैश में ला दिया।

अरे, अरे, अरे!

क्या कोई तभी महान है

जब भूखा मरे।

चौथे पैग के बाद महाभारत हुआ

लड़खड़ाते विचारों के बीच,

पांचवे ने तैयार करी

गुत्थमगुत्था की कीच।

कोई अज्ञेय

कोई केदार

कोई शमशेर हो गया,

जिसने छठा पैग लिया

वो वहीं ढेर हो गया।

सातवें पैग के बाद भी

एक समीक्षक

सधे हुए स्वर में बोले,

बोले क्या

उन्होंने कविता के रहस्य खोले--

जब भरे पेट में भी

भूख जाग जाती है,

तब कविता भाग जाती है।

चलो साथियो आओ

इस गिरे हुए कवि को उठाओ।

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब भरे पेट में भी

भूख जाग जाती है,

तब कविता भाग जाती है।


खाली पेटों की डगरों में, कविता नहीं सुहाती है।

Khare A said...

चलो साथियो आओ

इस गिरे हुए कवि को उठाओ।

in lines me hi kavita ka sar he Guru shreshth, hansate hansate , aap yun hi dhire se la patakte ho..
charon khane chitt...

pranaam Guru shreshth

Ashok Chakradhar said...

धन्यवाद प्रवीण जी आपको भी धन्यवाद खरे साहब

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! क्यों बेचारे कवियों की पोल खोल रहे हैं , अशोक जी ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘पांचवे ने तैयार करी’

द्रौपदी से मिलने की :)

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र said...

इसे कहते हैं करारा हास्य, करारा व्यंग्य और सुंदर रचना, हार्दिक बधाई स्वीकार करें चक्रधर जी।